हे शिव शम्भु .....
✡सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को।
 मिल जाये तरुवर की छाया॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है।
 मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे भोलेनाथ॥
🌹भटका हुआ मेरा मन था।
 कोई मिल ना रहा था सहारा॥
लहरों से लगी हुई नाव को जैसे।
 मिल ना रहा हो किनारा ॥
✡इस लडखडाती हुई नाव को जो।
 किसी ने किनारा दिखाया॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, 
मैं जब से शरण तेरी आया मेरे भोलेनाथ॥
🌹शीतल बने आग चन्दन के जैसी।
 भोलेनाथ  कृपा हो जो तेरी ॥
उजयाली पूनम की हो जाये राते।
 जो थी अमावस अँधेरी ॥
✡युग युग से प्यासी मुरुभूमि ने ।
जैसे सावन का संदेस पाया ॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है।
 मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे भोलेनाथ॥
🌹जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो।
 उस पर कदम मैं बड़ाऊ ॥
फूलों मे खारों मे पतझड़ बहारो मे ।
मैं ना कबी डगमगाऊ॥
✡पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे ।
जी भर के अमृत पिलाया ॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है।
 मैं जब से शरण तेरी आया मेरे भोलेनाथ ॥
 




