प्रभात दर्शन -
रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम,
ब्रह्नराजर्षिरत्नाढ्यां वन्दे मातरम्।
अर्थ-
सागर जिसके चरण धो रहा है,
हिमालय जिसका मुकुट है
और जो ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि रूपी रत्नों से समृद्ध हैं,
ऐसी भारत-माता की मैं वन्दना करता हूँ।
प्रभात दर्शन -
" मैं और मेरा परिवार ...
यहीं से हमारे दिन का प्रारम्भ और इसी पर समाप्त होता है।
अपने लिए तो पशु भी जीते हैं,
किन्तु मनुष्य को इसीलिए श्रेष्ठ कहा गया है
क्योंकि मनुष्य में अन्य के लिए सोचने एवं भलाई करने का गुण होता है।
आज का मनुष्य समृद्ध हो रहा है,
किन्तु अंदर से खाली हो रहा है।
एक बार चिंतन अवश्य करें कि
हम समाज, राष्ट्र से कितना लेते हैं और कितना वापिस देते हैं"
रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम,
ब्रह्नराजर्षिरत्नाढ्यां वन्दे मातरम्।
अर्थ-
सागर जिसके चरण धो रहा है,
हिमालय जिसका मुकुट है
और जो ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि रूपी रत्नों से समृद्ध हैं,
ऐसी भारत-माता की मैं वन्दना करता हूँ।
प्रभात दर्शन -
" मैं और मेरा परिवार ...
यहीं से हमारे दिन का प्रारम्भ और इसी पर समाप्त होता है।
अपने लिए तो पशु भी जीते हैं,
किन्तु मनुष्य को इसीलिए श्रेष्ठ कहा गया है
क्योंकि मनुष्य में अन्य के लिए सोचने एवं भलाई करने का गुण होता है।
आज का मनुष्य समृद्ध हो रहा है,
किन्तु अंदर से खाली हो रहा है।
एक बार चिंतन अवश्य करें कि
हम समाज, राष्ट्र से कितना लेते हैं और कितना वापिस देते हैं"