ફક્ત એક જ વાક્ય લખ્યું,..
શબ્દ ગુંજતો એ ‘માં’
દોરંગી દુનિયામાં એક શબ્દ ગુંજતો એ ‘માં’
*************************************
બોલતા શીખ્યો તો મારો પેહલો શબ્દ હતો " માં",
,
સાઈકલ પરથી પડ્યો તો રડીને બોલ્યો " ઓય માં "
,
સ્કૂલે જતા જતા રોજ કેહતો "બાઇ બાઇ માં '
,
મિત્રો ને હમેશાં ખુશીથી કેહતો " આ તો મારી માં"
,
ભાઈ બેહનો ને જગડી ને કેહતો" મારી એકલાની માં "
,
કોલેજ થી ફરવા જવું હોય તો કેહતો " પ્લીઝ , માં "
,
પપ્પા ગુસ્સો કરે તો તુરંત કેહતો " જો ને, માં "
,
ફોરેન ગયો તો યાદ આવતી " હમેશાં , માં"
,
સંસારિક મુંજવણ થી ઘેરાયો તો મનમાં કહ્યું " હવે શું થશે માં ?"
,
પણ
,
તે હમેશાં હિંમત આપીને એમજ કહ્યું " ખમ્માં ખમ્માં"
,
આજે દિલ ખોલીને કેહવા માંગું છું "ઓરે માં "
,
ક્યારેય ભૂલથી પણ તારું દિલ દુખાવ્યું હોય તો " માફકરજે માં"
,
ઝીંદગી ની આખરી ખ્વાઈશ રેહશે કે દર જન્મ મા બને " તૂજ મારી માં"
संस्कृत से क्यों डरते हैं ?..
सेक्युलर संस्कृत से क्यों डरते हैं ?
न्यूटन से पहले हजारों सेब गिर चुके हैं.
आज हमें पढ़ाया जाता है कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन (1642 -1726) ने दिया.
यदि विद्यार्थी संस्कृत पढेंगे तो जान जाएंगे कि यह झूठ है.
---
प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य (1114 – 1185) के द्वारा रचित
एक मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है ।
भास्कराचार्य ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा है-
आकृष्टिशक्तिश्चमहि तया यत् खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।।
– सिद्धान्त० भुवन० १६
अर्थात – पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथ्वी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।
-------------------
वराहमिहिर ( 57 BC ) ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में कहा है-
पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।।
– पञ्चसिद्धान्तिका पृ०३१
अर्थात- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथ्वी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।
--------------------
अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में आचार्य श्रीपति ने कहा है –
उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेःस्थितिरन्तरिक्षे ।।
– सिद्धान्तशेखर १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।।
–सिद्धान्तशेखर १५/२२
अर्थात -पृथ्वी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथ्वी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।
गुरु पुर्णिमा विशेष :
गुरु पुर्णिमा विशेष :
☄☄☄☄☄☄☄
जो मोह रहित होगा वही किसी का भला कर सकता है |
वैद्ध या डाक्टर दुनिया का इलाज करते है,पर अपनी स्त्री या बच्चे का इलाज दूसरे से करवाते है |
आखिर क्यो
खुद अच्छे डाक्टर या वैद्ध होते हूए भी मोह के कारण अपनी स्त्री या बच्चे का इलाज नही कर सकते | उनका इलाज वही कर सकेगा जिसमे मोह नही है |
अत: मोहरहित, पक्षपात रहित, संतो से जितनी अच्छी शिक्षा मिलती है, उतनी औरो के द्वारा नही मिलती | परंतु आज कल बडे दूख की बात है कि बहूत से गुरु कहते है कि तुम मेरे चेले बन जाओ तो बढिया ज्ञान मिलेगा , चेला बनने पर मोह हो जाएगा, ममता हो जायेगी और इससे दोनो का पतन हो जाएगा -----------
गुरु लोभी शिष्य लालची दोनो खेले दाव |
दोनो डूबा परसराम , बैठ पथर की नाव ||
चेला सोचता है गुरु जी को दान कर देने से बाबाजी हमारे पाप लेलेगे | उधर बाबा सोचते है पैसा मुफ्त मे मिल रहा है,चेले को एक कंठी देने मे क्या जा रहा है|
क्या कंठी ले लेने या दे देने से कल्याण हो जाता है ?
लोग कहते है गुरु बना लो, भाई नही है तो धर्म भाई बना लो,बहन नही है तो धर्म बहन बना लो |
गुरु बनाने से क्या होता है?
कोई कहते है हमारे गुरुजी बडे है तो कोई दूसरा कहता है हमारे बडे है ?
अब क्या और कैसे फैसला हो कि कौन बडा है ?
कहते है गुरु के बिना कल्याण ही नही होता तो जिसने गुरु बना लिया उसका कल्याण हो गया क्या ?
अगर उनका नही हूआ तो मेरा कैसे होगा भाई |
જેટલો પ્લોટ હોય..
ગૂરૂ પૂર્ણિમા...એવા ગૂરૂવરને કોટી કોટી પ્રણામ..
गुरुः शाक्षात परमब्रम्ह तस्मैश्री गुरवे नमः"
सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
हे शिव शम्भु .....
✡सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को।
मिल जाये तरुवर की छाया॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है।
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे भोलेनाथ॥
🌹भटका हुआ मेरा मन था।
कोई मिल ना रहा था सहारा॥
लहरों से लगी हुई नाव को जैसे।
मिल ना रहा हो किनारा ॥
✡इस लडखडाती हुई नाव को जो।
किसी ने किनारा दिखाया॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जब से शरण तेरी आया मेरे भोलेनाथ॥
🌹शीतल बने आग चन्दन के जैसी।
भोलेनाथ कृपा हो जो तेरी ॥
उजयाली पूनम की हो जाये राते।
जो थी अमावस अँधेरी ॥
✡युग युग से प्यासी मुरुभूमि ने ।
जैसे सावन का संदेस पाया ॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है।
मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे भोलेनाथ॥
🌹जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो।
उस पर कदम मैं बड़ाऊ ॥
फूलों मे खारों मे पतझड़ बहारो मे ।
मैं ना कबी डगमगाऊ॥
✡पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे ।
जी भर के अमृत पिलाया ॥
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है।
मैं जब से शरण तेरी आया मेरे भोलेनाथ ॥
वैष्णव के गले में तुलसी की कण्ठी
जिस वस्तु में आप तुलसी-पत्र रखतेहो, वह कृष्णार्पण हो जाती है ।
गले में तुलसी की माला धारण करने का अर्थ यह है कि,
यह शरीर अब भगवान् को अर्पण हुआ है ।
बहुत-से लोग गले में तुलसी की कंठी तो धारण करते हैं-
जीवन एक क्रिकेट है..
दुर्घटना में मरना रन आउट कहलाता है,
और आत्मघात का मतलब हिट विकेट हो जाना ,
हत्या का अर्थ स्टम्प आउट होना,
हलाकि कुछ आक्रामक खिलाडी जल्दी पवेलियन लौट जाते है
... मुनि श्री तरुणसागरजी,