श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे

*।। श्रीकृष्ण ।।*
*श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे,*
*हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!*

*श्री* = निधि
*कृष्ण* = आकर्षण तत्व
*गोविन्द* = इन्द्रियों को वशीभुत करना गो-इन्द्रि, विन्द बन्द करना, वशीभूत
*हरे* = दुःखों का हरण करने वाले
*मुरारे* = समस्त बुराईयाँ- मुर (दैत्य)
*हे नाथ* = मैं सेवक आप स्वामी
*नारायण* = मैं जीव आप ईश्वर
*वासु* = प्राण
*देवाय* = रक्षक

अर्थात : *“हे आकर्षक तत्व मेरे प्रभो, इन्द्रियों को वशीभूत करो, दुःखों का हरण करो, समस्त बुराईयों का बध करो, मैं सेवक हूँ आप स्वामी, मैं जीव हूं आप ब्रह्म, प्रभो ! मेरे प्राणों के आप रक्षक है......*
          🌹जय श्री कृष्ण🌹

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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्

🙏 *द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्* 🙏🌿🍁

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जैन्यां महाकालं ओंकार ममलेश्वरम्।।

परल्यां वैद्यनाथं च, दाखिन्यां भीमाशंकरम्।
सेतुबन्धे तु  रामेशं नागेशं दारुकावने।।

वाराणष्यां तु विश्वेशं, त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं धुष्णेशं च शिवालये।।

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि, सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्त जन्म कृतं पापं स्मरेण विनश्यति।।

Krishna name

*भगवान् श्री कृष्ण जी के 51 नाम और उन के अर्थ:.....*
*1 कृष्ण* : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला.।
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*2 गिरिधर*: गिरी: पर्वत ,धर: धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले।
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*3 मुरलीधर*: मुरली को धारण करने वाले।
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*4 पीताम्बर धारी*: पीत :पिला, अम्बर:वस्त्र। जिस ने पिले वस्त्रों को धारण किया हुआ है।
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*5 मधुसूदन:* मधु नामक दैत्य को मारने वाले।
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*6 यशोदा या देवकी नंदन*: यशोदा और देवकी को खुश करने वाला पुत्र।
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*7 गोपाल*: गौओं का या पृथ्वी का पालन करने वाला।
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*8 गोविन्द*: गौओं का रक्षक।
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*9 आनंद कंद:* आनंद की राशि देंने वाला।
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*10 कुञ्ज बिहारी*: कुंज नामक गली में विहार करने वाला।
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*11 चक्रधारी*: जिस ने सुदर्शन चक्र या ज्ञान चक्र या शक्ति चक्र को धारण किया हुआ है।
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*12 श्याम*: सांवले रंग वाला।
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*13 माधव:* माया के पति।
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*14 मुरारी:* मुर नामक दैत्य के शत्रु।
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*15 असुरारी*: असुरों के शत्रु।
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*16 बनवारी*: वनो में विहार करने वाले।
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*17 मुकुंद*: जिन के पास निधियाँ है।
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*18 योगीश्वर*: योगियों के ईश्वर या मालिक।
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*19 गोपेश* :गोपियों के मालिक।
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*20 हरि*: दुःखों का हरण करने वाले।
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*21 मदन:* सूंदर।
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*22 मनोहर:* मन का हरण करने वाले।
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*23 मोहन*: सम्मोहित करने वाले।
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*24 जगदीश*: जगत के मालिक।
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*25 पालनहार*: सब का पालन पोषण करने वाले।
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*26 कंसारी*: कंस के शत्रु।
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*27 रुख्मीनि वलभ*: रुक्मणी के पति ।
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*28 केशव*: केशी नाम दैत्य को मारने वाले. या पानी के उपर निवास करने वाले या जिन के बाल सुंदर है।
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*29 वासुदेव*:वसुदेव के पुत्र होने के कारन।
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*30 रणछोर*:युद्ध भूमि स भागने वाले।
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*31 गुड़ाकेश*: निद्रा को जितने वाले।
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*32 हृषिकेश*: इन्द्रियों को जितने वाले।
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*33 सारथी*: अर्जुन का रथ चलने के कारण।
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*35 पूर्ण परब्रह्म:* :देवताओ के भी मालिक।
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*36 देवेश*: देवों के भी ईश।
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*37 नाग नथिया*: कलियाँ नाग को मारने के कारण।
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*38 वृष्णिपति*: इस कुल में उतपन्न होने के कारण
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*39 यदुपति*:यादवों के मालिक।
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*40 यदुवंशी*: यदु वंश में अवतार धारण करने के कारण।
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*41 द्वारकाधीश*:द्वारका नगरी के मालिक।
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*42 नागर*:सुंदर।
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*43 छलिया*: छल करने वाले।
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*44 मथुरा गोकुल वासी*: इन स्थानों पर निवास करने के कारण।
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*45 रमण*: सदा अपने आनंद में लीन रहने वाले।
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*46 दामोदर*: पेट पर जिन के रस्सी बांध दी गयी थी।
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*47 अघहारी*: पापों का हरण करने वाले।
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*48 सखा*: अर्जुन और सुदामा के साथ मित्रता निभाने के कारण।
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*49 रास रचिया*: रास रचाने के कारण।
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*50 अच्युत*: जिस के धाम से कोई वाप CEिस नही आता है।
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*51 नन्द लाला*: नन्द के पुत्र होने के कारण।
🙏🌺 *।। जय श्री कृष्णा ।।* 🌺🙏

बचपन के वो दिन

HAPPY FRIENDSHIP DAY TO ALL FRIENDS.
*जवानी से अच्छा कहीं एक बचपन हुआ करता था गालिब*..
*जिसमें दुश्मनी की जगह सिर्फ एक कट्टी हुआ करती थी* ।।
*कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन*...
*के सिर्फ दो उंगलिया जुडने से दोस्ती फिरशुरू हो जाती थी*.

दोस्ती...!

🌹दोस्ती...!

ना कभी इम्तिहान लेती है,
ना कभी इम्तिहान देती है
दोस्ती तो वो है -जो बारिश में भीगे चेहरे पर भी,
आँसुओं को पहचान लेती है ।
आज रब से मुलाकात की;
थोड़ी सी आपके बारे में बात की;
मैंने कहा क्या दोस्त है;
क्या किस्मत पाई है;
रब ने कहा संभाल के रखना;
मेरी पसंद है, जो तेरे हिस्से में आई है,
दिन बीत जाते है सुहानी यादे बनकर ,
बाते रह जाती है कहानी बनकर पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,
कभी मुस्कान तो कभी आँखों का पानी बनकर.......🌹
मित्रता दिवस की बधाई।

........ हरिवंशराय बच्चन 

દોસ્તી એટલે ' હું ' નહી ,

દોસ્તી એટલે ' હું ' નહી ,
દોસ્તી એટલે 'તું ' યે નહી,
દોસ્તી એટલે
'હું' અને 'તું' સુધી પહોચવાની
 વિશ્વાસની નાનકડી કેડી ....

 દોસ્તી એટલે
એક ખભા નું સરનામું ,
જ્યાં દુખની ટપાલ...
ટિકિટ વિના પોસ્ટ કરી શકાય ,
વ્યથા અને આનંદ..
વહેંચવાનું સરનામું,
જ્યાં વગર ટકોરેપહોંચી શકાય..

   મૈત્રી દિવસની શુભેચ્છાઓ. 

दोस्तों के नाम

चार लाइने  दोस्तों के नाम💞

"काश फिर मिलने की वजह मिल जाए!
"साथ जितना भी बिताया वो पल मिल जाए!
"चलो अपनी अपनी आँखें बंद कर लें!
"क्या पता ख़्वाबों में गुज़रा हुआ कल मिल जाए!

"मौसम को जो महका दे उसे 'इत्र' कहते हैं!
"जीवन को जो महका दे उसे ही 'मित्र' कहते है!

"क्यूँ  मुश्किलों में  साथ  देते  हैं  "दोस्त"
"क्यूँ  गम  को  बाँट लेते  हैं "दोस्त"
"न  रिश्ता  खून  का  न  रिवाज  से  बंधा  है!
"फिर  भी  ज़िन्दगी  भर का साथ  देते  हैं  "दोस्त"।

મિત્રો ની દિલદારી અને વફાદારી ને .....

આ ગઝલ સમર્પિત છે મિત્રો ની દિલદારી અને વફાદારી ને .....

ફળે  છે  ઇબાદત  , ને  ખુદા મળે  છે
મિત્રોને   નિહાળીને  ,  ઉર્જા  મળે  છે

નથી જાતો  મંદિર , મસ્જિદ ,ચર્ચમાં
મિત્રોના  ઘરોમાં  જ  દેવતા  મળે  છે

ખસું  છુ  હું  જયારે  સતત ખુદમાંથી
મિત્ર તારા  હૃદયમાં  જગ્યા  મળે  છે

સમય છે ઉકળતો ને જીવન સળગતું
મિત્રોની  હથેળીમાં ,  શાતા  મળે  છે

ઈચ્છા  ને   તમન્ના  બધી   થાય  પૂરી
મને  ઊંઘમાં મિત્રના  સપના મળે  છે

ડૂબું છુ  આ સંસાર  સાગરમાં  જયારે
મિત્રતાના  મજબૂત  તરાપા મળે  છે

દવાઓ  ને   સારવાર  નીવડે  નકામી
મિત્રોની  અસરદાર   દુઆ   મળે   છે

જીવન કે  મરણની  ગમે  તે  ઘડી  હો
સદનસીબે  મિત્રોના ખભ્ભા  મળે  છે

भगवान कौ भेंट*

🌸 *भगवान कौ भेंट*🌸

🔸पुरानी बात है, एक सेठ के पास एक व्यक्ति काम करता था । सेठ उस व्यक्ति पर बहुत विश्वास करता था जो भी जरुरी काम हो वह सेठ हमेशा उसी व्यक्ति से कहता था।
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🔹वो व्यक्ति भगवान का बहुत बड़ा भक्त था वह सदा भगवान के चिंतन भजन कीर्तन स्मरण सत्संग आदि का लाभ लेता रहता था ।
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🔸एक दिन उस वक्त ने सेठ से श्री जगन्नाथ धाम यात्रा करने के लिए कुछ दिन की छुट्टी मांगी सेठ ने उसे छुट्टी देते हुए कहा भाई मैं तो हूं संसारी आदमी हमेशा व्यापार के काम में व्यस्त रहता हूं जिसके कारण कभी तीर्थ गमन का लाभ नहीं ले पाता ।

🔹तुम जा ही रहे हो तो यह लो 100 रुपए मेरी ओर से  श्री जगन्नाथ प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना । भक्त सेठ से सौ रुपए लेकर श्री जगन्नाथ धाम यात्रा पर निकल गया .

🔸कई दिन की पैदल यात्रा करने के बाद वह श्री जगन्नाथ पुरी पहुंचा ।
मंदिर की ओर प्रस्थान करते समय उसने रास्ते में देखा कि बहुत सारे संत , भक्त जन, वैष्णव जन, हरि नाम संकीर्तन बड़ी मस्ती में कर रहे हैं ।

🔹सभी की आंखों से अश्रु धारा बह रही है । जोर-जोर से हरि बोल, हरि बोल गूंज रहा है । संकीर्तन में बहुत आनंद आ रहा था । भक्त भी वहीं रुक कर हरिनाम संकीर्तन का आनंद लेने लगा ।
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🔸फिर उसने देखा कि संकीर्तन करने वाले भक्तजन इतनी देर से संकीर्तन करने के कारण उनके होंठ सूखे हुए हैं वह दिखने में कुछ भूखे भी प्रतीत हो रहे हैं उसने सोचा क्यों ना सेठ के सौ रुपए से इन भक्तों को भोजन करा दूँ।
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🔹उसने उन सभी को उन सौ रुपए में से भोजन की व्यवस्था कर दी। सबको भोजन कराने में उसे कुल 98 रुपए खर्च करने पड़े ।
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🔸उसके पास दो रुपए बच गए उसने सोचा चलो अच्छा हुआ दो रुपए जगन्नाथ जी के चरणों में सेठ के नाम से चढ़ा दूंगा । जब सेठ पूछेगा तो मैं कहूंगा वह पैसे चढ़ा दिए । सेठ यह तौ नहीं कहेगा 100 रुपए चढ़ाए । सेठ पूछेगा पैसे चढ़ा दीजिए। मैं बोल दूंगा कि , पैसे चढ़ा दिए । झूठ भी नहीं होगा और काम भी हो जाएगा ।
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🔹वह भक्त श्री जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए मंदिर में प्रवेश किया श्री जगन्नाथ जी की छवि को निहारते हुए हुए अपने हृदय में उनको विराजमान कराया ।अंत में उसने सेठ के दो रुपए श्री जगन्नाथ जी के चरणो में चढ़ा दिए ।और बोला यह दो रुपए सेठ ने भेजे हैं ।
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🔸उसी रात सेठ के पास स्वप्न में श्री जगन्नाथ जी आए आशीर्वाद दिया और बोले सेठ तुम्हारे 98 रुपए मुझे मिल गए हैं यह कहकर श्री जगन्नाथ जी अंतर्ध्यान हो गए ।
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🔹सेठ जाग गया व सोचने लगा मेरा नौकर तौ बड़ा ईमानदार है ,पर अचानक उसे क्या जरुरत पड़ गई थी उसने दो रुपए भगवान को कम चढ़ाए? उसने दो रुपए का क्या खा लिया ? उसे ऐसी क्या जरूरत पड़ी ? ऐसा विचार सेठ करता रहा ।
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🔸काफी दिन बीतने के बाद भक्त वापस आया और सेठ के पास पहुंचा। सेठ ने कहा कि मेरे पैसे जगन्नाथ जी को चढ़ा दिए थै ? भक्त बोला हां मैंने पैसे चढ़ा दिए ।
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🔹सेठ ने कहा पर तुमने 98 रुपए क्यों चढ़ाए दो रुपए किस काम में प्रयोग किए  । तब भक्त ने सारी बात बताई की उसने 98 रुपए से संतो को भोजन करा दिया था । और ठाकुर जी को सिर्फ दो रुपए चढ़ाये थे ।
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🔸सेठ सारी बात समझ गया व  बड़ा खुश हुआ तथा भक्त के चरणों में गिर पड़ा और बोला आप धन्य हो आपकी वजह से मुझे श्री जगन्नाथ जी के दर्शन यहीं बैठे-बैठे हो गए।

🔹सार यै है कि भगवान को आपके धन की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान को वह 98 रुपए स्वीकार है जो जीव मात्र की सेवा में खर्च किए गए और उस दो रुपए का कोई महत्व नहीं जो उनके चरणों में नगद चढ़ाए गए ।

🙏जय जय श्री राधै🙏