नुकसान की भरपाई कहीं न कहीं से हो ही जाएगी..



एक गुरूकुल था जिसमें कई सारे विद्यार्थी प्रतिवर्ष शिक्षा के लिए प्रवेश लेते थे व कई सारे विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करके वहाँ से विदाई लेते थे। गुरूकुल में जो विद्यार्थी विदाई लेने वाले होते थे, उन्‍हे विदाई लेने से पूर्व एक दौड प्रतियोगिता करनी होती थी जिसे गुरूकुल की अंतिम प्रतियोगिता नाम से जाना जाता था।

दौड गुरूकुल से एक किलोमीटर दूर एक गुफा तक होती थी जिसे एक निश्चित समय में पूरा करना होता था। अब सभी विदाई लेने वाले विद्यार्थीयों ने दौड प्रारम्‍भ की और निर्धारित समय में सभी विद्यार्थी अपने लक्ष्‍य तक पहुंच गए परंतु एक विद्यार्थी अभी तक अपने लक्ष्‍य पर नहीं पहुंचा था।

जो विद्यार्थी निर्धारित समय सीमा में अपने लक्ष्‍य को पूर्ण कर चुके थे उन सब से गुरूजी ने पूछा कि –

तुम सभी विद्यार्थीयों ने इस दौड को निर्धारित समय सीमा में कैसे पूरा कर लिया?

सभी विद्यार्थीयों ने प्रत्‍युत्‍तर दिया कि-

हम सभी ने बडी मेहनत से और दिल लगाकर इस दौड में जीतने का प्रयास किया था इसलिए हम सभी ने निर्धारित समय में इस दौड प्रतियोगिता को पूरा कर लिया।

अब वह अंतिम विद्यार्थी भी लक्ष्‍य तक पहुंचा परंतु दुर्भाग्‍यवश निर्धारित समय समाप्‍त हो चुका था। इस बात से गुरूजी ने उस विद्यार्थी से पूछा कि-

तुम को यह दौड पूर्ण करने में इतनी देर क्‍यों लग गई?


उस विद्यार्थी ने प्रत्‍युत्‍तर दिया कि-

गुरूजी… में देर से इसलिए पहुंचा क्‍योंकि जब में दौड रहा था तो मुझे रास्‍ते में पडे कंकर-पत्‍थर चुभ रहे थे। मैंने सोचा कि जब ये मुझे चुभ रहे हैं, तो मेरे जो साथी मुझसे पीछे दौड रहे हैं उन्‍हे भी चुभेंगे। ये बात सोचकर मैंने उन कंकर-पत्‍थरों को बीनकर अपनी जेब में रखना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से मैं इस प्रतियोगिता में पीछे रह गया।

गुरूजी उस विद्यार्थी के इस प्रत्‍युत्‍तर से बहुत खुश हुए क्‍योंकि वह विद्यार्थी प्रतियोगिता में विजेता बनने की न सोचकर दूसरे सहपाठी विद्यार्थीयों को दौडने में कष्‍ट न हो, इसका समाधान कर रहा था और गुरूजी ने उसे ही अंतिम प्रतियोगिता का विजेता घोषित किया और उससे गुरूजी ने पूछा कि-

वह कंकर-पत्‍थर कहाँ है जो तुमने बीने थे?

उस विद्यार्थी ने गुरूजी के सामने उन कंकर-पत्‍थरों को प्रस्‍तुत किया तो गुरूजी उन कंकर-पत्‍थरों को देखकर हैरान रह गए क्‍योंकि वह विद्यार्थी जिन्‍हें कंकर-पत्‍थर समझ कर बीन लाया था, वे वास्‍तव में हीरे व कीमती मोती थे।

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इस कहानी का Moral ये है कि जब आप दूसरों का भला करने के लिए कुछ करते हैं, तो वह सर्वशक्तिमान आपका भला करने के लिए भी कुछ करने लगता है। इसलिए कभी किसी के लिए कुछ अच्‍छा करते समय यदि आपका अपना कुछ नुकसान हो भी जाए, तो चिन्‍ता न करें। उस नुकसान की भरपाई कहीं न कहीं से हो ही जाएगी लेकिन किसी के लिए कुछ अच्‍छा करने का जो अनुभव होता है, वह अनुभव किसी और तरह से प्राप्‍त नहीं हो सकता।