बिज़नेस एक कला..

ज्ञान में व्यापारिक कथा.

*आज मैं आपको एक कहानी बताने जा रहा हूँ, जिसमें एक बिज़नेसमैंन अपनी सूझबूझ, चतुराई और व्यवहारिक समझ से मुनाफा कमाता है। आइये बताता हूँ आपको ये कहानी।*

*कहानी कुछ यूं है कि केरल में एक बड़ी फैक्ट्री का निर्माण हो रहा था। उस प्लांट को बनाने के दौरान एक बड़ी समस्या थी। वो समस्या ये थी कि एक भारी भरकम मशीन को प्लांट में बने एक गहरे गढ्ढे के तल में बैठाना था लेकिन मशीन का भारी वजन एक चुनौती बन कर उभरा।*

*मशीन साईट पर आ तो गयी पर उसे 30 फीट गहरे गढ्ढे में कैसे उतारा जाये ये एक बड़ी समस्या थी! अगर ठीक से नहीं बैठाया गया तो फाउंडेशन और मशीन दोनों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता!*

*आपको बता दे कि ये वो समय था जब बहुत भारी वजन उठाने वाली क्रेनें हर जगह उपलब्ध नहीं थीं। जो थीं वो अगर उठा भी लेतीं तो गहरे गढ्ढे में उतारना उनके बस की बात नहीं थी।*

*आखिरकार हार मानकर इस समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिए प्लांट बनाने वाली कम्पनी ने टेंडर निकाला और इस टेंडर का नतीज़ा ये हुआ कि बहुत से लोगो ने इस मशीन को गड्ढे में फिट करने के लिए अपने ऑफर भेजे उन्होंने सोचा कि कहीं से बड़ी क्रेन मंगवा कर मशीन फिट करवा देंगे। इस हिसाब से उन्होंने 10 से 15 लाख रुपये काम पूरा करने के मांगे। लेकिन उन लोगों के बीच एक व्यक्ति और भी था जिसने कंपनी से पूछा, कि अगर मशीन पानी से भीग जाये तो कोई समस्या होगी क्या? इस पर कंपनी ने जबाव दिया कि मशीन को पानी में भीग जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके बाद उसने भी टेंडर भर दिया।*

*जब सारे ऑफर्स देखे गये तो उस व्यक्ति ने काम करने के सिर्फ 5 लाख मांगे थे, जाहिर है मशीन बैठाने का काम उसे मिल गया। लेकिन अजीब बात ये थी कि उस आदमी ने ये बताने से मना कर दिया कि वो ये काम कैसे करेगा, बस इतना बोला कि ये काम करने का हुनर और सही टीम उसके पास है।*

*उसने कहा – कम्पनी बस उसे तारीख और समय बताये कि किस दिन ये काम करना है।*

*आखिर वो दिन आ ही गया! हर कोई उत्सुक था ये जानने के लिए कि वो आदमी ये काम कैसे करेगा? उसने तो साईट पर कोई तैयारी भी नहीं की थी। तय समय पर कई ट्रक उस साईट पर पहुँचने लगे। उन सभी ट्रकों पर बर्फ लदी थी, जो उन्होंने गढ्ढे में भरना शुरू कर दिया।*

*जब बर्फ से पूरा गढ्ढा भर गया तो उन्होंने मशीन को खिसकाकर बर्फ की सिल्लियों के ऊपर लगा दिया। इसके बाद एक पोर्टेबल वाटर पंप चालू किया गया और गढ्ढे में पाइप डाल दिया जिससे कि पानी बाहर निकाला जा सके। बर्फ पिघलती गयी, पानी बाहर निकाला जाता रहा, मशीन नीचे जाने लगी। 14-15 घंटे में ही काम पूरा हो गया और कुल खर्चा 1 लाख रुपये से भी कम आया। मशीन एकदम अच्छे से फिट हो गयी और उस ठेकेदार ने 4 लाख रुपये से अधिक मुनाफा भी कमा लिया।*

*वास्तव में बिज़नेस बड़ा ही रोचक विषय है। ये एक कला है, जो व्यक्ति की सूझबूझ, चतुराई और व्यवहारिक समझ पर निर्भर करता है। मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का भी सरल समाधान खोजना ही एक अच्छे बिजनेसमैन की पहचान है; और ये उस व्यक्ति ने साबित कर दिया।*
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*_अपने व्यापार में किसी भी और व्यक्ति_*
*_से ज्यादा खुद में यकीन होना चाहिए...._*

*_यदि इंसान में अपने काम के_*
*_प्रति लग्न है तो वो अपने अन्दर_*
*_की सारी खामियों से पार पा लेगा..._*

‘બે જણને જોઈએ કેટલું?’*

*: ‘બે જણને જોઈએ કેટલું?’*

એક છાપું,
એક દૂધની થેલી ને
રોજ એક માટલું પાણી, બઉ થ્યું.

ચા-ખાંડના ડબ્બા,
કોફીની ડબ્બી પણ
માંડ ખાલી થાય.
‘કોલગેટ’ દોઢ મહિનો ચાલે ને
મહિનો ચાલે એંશી ગ્રામ
લક્સની એક ગોટી.
સો ગ્રામ શેમ્પુ તો કાઢ્યું ન ખૂટે.

જમવામાં શાક હોય તો
દાળ વિના ચાલે
ને ફક્ત દાળ હોય તોય ભયોભયો!
ખીચડી એટલે બત્રીસ પકવાન ને
છાશ હોય પછી જોઈએ શું!

‘સો ફ્લાવર, ત્રણસો દૂધી, અઢીસો બટાકા, ચાર પણી ભાજી,
આદુ-લીંબુ-ધાણા’
થ્યું અઠવાડિયાનું શાક.

ત્રણ મણ ઘઉં વરસ દિ’ ચાલે ને
પાચ કિલો ચોખા નાખ-નાખ થાય!
ન કોઈ ખાસ મળવા આવે
પછી મુખવાસનું શું કામ!

નાની તપેલી, નાની વાડકી, નાની બે થાળી,
આમ આઠ-દસ વાસણો માંડ વપરાય
તે એક ‘વિમ’ બે દોઢ મહિને માંડ ઘાસાય.
વળી રોજ ધોવામાં હોય ચાર કપડાં
તે કિલો ‘નિરમા’ મહિને કાઢ્યો ન ખૂટે!

કોપરેલની એક શીશી એક મહિનો ચાલે ને
પફ-પાવડર તો ગ્યાં ક્યારના ભૂલાયાં.
પણ
પ્રેમ, સ્નેહ, વાત્સલ્ય,
આપો એટલાં ઓછા.
ઠસોઠસ હસાહસી ને ‘હોહા’ તો લાવ લાવ થાય.
એટલે જ પ્રેમ અને સ્નેહ લઈને
બધાં બે-ત્રણ વરસે ઊડીને આવે.
‘ઝટ્ટ આવશું, જરૂર આવશું’ કહી જાય.
તે પલકારામાં બે જણ પાછાં હતાં એવાં થઇ જાય.
પછી પાછી ઈ જ રટણ પડઘાય,
*‘બે જણને જોઈએ કેટલું?’*


દિકરી ને જમાઇ લઈ ગયા
અને દિકરાને વહુ લઈ ગઈ.
અંતે તો આપણે બે જ રહ્યા.

👌👌👌

*આજનુ સનાતન સત્ય. ...*
*ઘર ઘર ની કહાણી. ..*