મોંઘું રમકડું..........

મોંઘું રમકડું..........

મિત્રો ૫ મિનિટનો સમય કાઢીને જરૂર વાંચજો. ફેસબુક ઉપર મારી પહેલી કૃતિ મારી બહેનોને સમર્પિત ....
ઍક વખત ઍક ગામમાં સરસ મજાનો ભવ્ય મેળાનું આયોજન થયુ. આજુબાજુના ગામના માણસો પણ આ મેળામાં આવ્યા. મેળામાં અલગ અલગ વસ્તુઑ, આભૂષણોથી મેળાનું આકર્ષણ વધતું હતું.

તે મેળામાં ઍક પિતા પોતાના ૮ વર્ષના પૂત્ર અને ૧૨ વર્ષની પૂત્રી સાથે, પૂત્રની જિદ્દના કારણે ફરવા આવ્યા. પિતાની આંગળી પકડીને ભાઈ-બહેન બંન્ને મેળામાં ફરવા લાગ્યા. અનેક વસ્તુઑ અને ઍકથીઍક ચડિયાતી આભૂષણો જોઈને ભાઈ-બહેનનું મન તે વસ્તુ પર મોહિત થઈ જતું. પરંતુ, પિતાની આર્થિક સ્થિતી નબળી હોવાથી તે વસ્તુ કે ભૂષણને જોઈને જ સંતોષ અનુભવાતો. પિતા-પૂત્ર- પૂત્રી સાથોસાથ મેળામાં ફરવા લાગ્યા.
આગળ જતાં બાળકની નજર ઍક સુંદર રમકડાં ઉપર પડી. ઍ રમકડાંમાં તેની આંખ અંજાઈ ગઈ.
 તે રમકડાંને ખરીદવા માટે તેણે પિતા પાસે જિદ્દ કરી. પણ પિતાની રિસ્થિતી ઍટલી નહોતી કે પિતા તે મોંઘું રમકડું ખરીદી શકે. બાળકે તે રમકડાં પાછળ ખૂબ ધમપછાડા કર્યા. પૂત્ર રડવા લાગે છે પરંતુ પિતા ઍક આક્રોષભર્યા ઠપકાથી તે શાંત થાય છે. પિતા પુત્રને લઈને આગળ ચાલવા લાગ્યા.

પુત્રની નજર હજી પણ તે રમકડાં ઉપર ચોંટી હતી. આગળ ચાલવા લાગે છે, આગળ ચાલતાં ઍક આકર્ષક આભૂષણોથી સજ્જ દુકાન આવી. ત્યા પૂત્રીની નજર ઍક સરસ મજાંની ઝાંઝરની જોડ પર પડી. ઍકીટસે પૂત્રીની નજર ઝાંઝર પર જોતાં, પિતાને જણાયું કે પૂત્રીને કોઈ વસ્તુ પર ધ્યાન કેન્દ્રીત કરતા જોઈને પિતાઍ પોતાની લાડકી દીકરીને તે ઝાંઝરની જોડ ખરીદવા ઉત્સાહથી કહ્યું. ઝાંઝર પ્રાપ્ત કરીને દીકરી ખૂબ ખુશ થઈ. દીકરીની ખુશી સાફ સાફ તેના ચહેરા પર દેખાતી હતી.

महाकाल को निर्वाण रूप कहा गया है..

महाकाल को निर्वाण रूप कहा गया है। 
बारह ज्योतिलिंग रुद्राष्टक के अंदर समाये हुए हैं। 
रुद्राष्टकम् यदि आप अपनी झोली में लेकर घूमते है। 
तब आपकी झोली में बारह ज्योतिलिंग होते है।
भगवान् शिव अष्ट मूर्ति है।रुद्राष्टक की रचना इसी के लिए हुई है।
काकभुसुण्डि जी ने आठ अपराध किये थे। इससे मुक्ति के लिए ही रुद्राष्टक है। 
अपराध हम सब करते है।रूद्राष्ट्क अपराधों से मुक्त होने के लिए 
उसकी निवृक्ति के लिए सफल साधना का साधन है।
रुद्राष्टक इंसान की राम भक्ति को दृढ़ करता है कृष्ण भक्ति को बल देता है। 
रुद्राक्षक का पाठ आह्लाद और ऊर्जा प्रदान करता है। 
रुद्राष्टक सिद्ध भी है और शुद्ध भी है। रुद्राष्टक बोले नहीं रुद्राष्टक गाएँ।

शिव भक्ति के घमण्ड में चूर काकभुशुण्डि गुरु का उपहास करने पर भगवान शंकर के शाप से अजगर बने। तब गुरु ने ही अपने शिष्य को शाप से मुक्त कराने के लिए शिव की स्तुति में रुद्राष्टक की रचना की। शिव की इस स्तुति से भक्त का मन भक्ति के भाव और आनंद में इस तरह उतर जाता है कि वह बाहरी दुनिया से मिले नकारात्मक ऊर्जा, तनाव, द्वेष, ईर्ष्या और अंह को दूर कर देता है। सरल शब्दों में यह पाठ मन की अकड़ का अंत कर झुकने के भाव पैदा करता है।

व्यावहारिक जीवन की नजर से यह कथा संदेश देती है कि जीवन में सफलता, कुशलता, धन या ज्ञान के अहं के मद में चूर होकर बड़े या छोटे किसी भी व्यक्ति का उपहास या अपमान न करें। आपके लक्ष्य प्राप्ति और सफलता में मिले किसी भी व्यक्ति के छोटे से योगदान को भी न भुलाएं और ईर्ष्या से दूर होकर पूरे बड़प्पन के साथ अपनी सफलता में शामिल करें। इससे गुरु-शिष्य ही नहीं हर रिश्ते में विश्वास और मिठास बनी रह सकती है। धार्मिक दृष्टि से यह संदेश है कि शिव किसी भी बुरे आचरण को भी सहन नहीं करते, चाहे फिर वह उनका परम भक्त ही क्यों न हो।

सूक्ति. सत्य वचन

सूक्ति.  सत्य वचन

किसी का दिल दुखाने वाली बात न कहें , वक्त बीत जाता है, बातें याद रहती हैं ।

लंबी जबान और लंबा धागा हमेशा उलझ जाता हैं ।

बुरे विचार उस हृदय में प्रवेश नहीं कर सकते जिसके द्वार पर ईश्वरीय- विचार के पहरेदार खड़े हों ।

दुनियां आपके '  उदाहरण ' से बदलेगी आपकी ' राय ' से नहीं।

इंसान की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसका मनोबल है ।

सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है ।

ऐसा जीवन जियो कि अगर कोई आपकी बुराई भी करे तो लोग उस पर विश्वास न करें ।

कमजोर तब रूकते हैं जब वे थक जाते हैं और विजेता तब रूकते हैं जब वे जीत जाते हैं ।

अहंकार से जिस व्यक्ति का मन मैला है, करोड़ो की भीड़ में भी वो सदा अकेले रहते है ।

हमारी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है, सिवाय हमारे ।

काम में ईश्वर का साथ मांगो लेकिन ईश्वर ये काम कर दे, ऐसा मत मांगो ।

जिस हाथ से अच्छा कार्य हो , वह हाथ तीर्थ है ।

अच्छा दिल संबंधों को जीत सकता है पर अच्छा स्वभाव उसे आजीवन निभा सकता है ।

अगर मैं सुखी होना चाहता हूं तो कोई मुझे दुखी नहीं कर सकता ।

गलतियां क्षमा की जा सकती हैं अगर आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो ।

ईमानदारी बरगद के पेड़ के समान है जो देर से बढ़ती है किन्तु चिरस्थायी रहती है ।

यदि कोई व्यक्ति आपको गुस्सा दिलाने में सफल होता हैं तो यकीनन आप उसकी हाथ की कठपुतली हैं ।

जिसके पास उम्मीद हैं वह लाख बार हार के भी नहीं हारता ।

कुछ देने के लिए दिल बड़ा होना चाहिए, हैसियत नहीं ।

घर बड़ा हो या छोटा , अगर मिठास न हो तो इंसान तो क्या , चीटिंयां भी नहीं आती ।

इस जन्म का पैसा अगले जन्म में काम नहीं आता लेकिन पुण्य जन्मों -जन्म तक काम आता है ।

जो ' प्राप्त ' हैं वो ही ' पर्याप्त ' हैं इन दो शब्दों में सुख बे हिसाब हैं ।

वह अच्छाई जो बुरा करने वाले को मदद करें , अच्छाई नहीं होती हैं।

हमेशा खुश रहे 

युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी..

"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-

ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।
ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद
अधूरा ज्ञान खतरना होता है।

33 करोड नहीँ  33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मेँ।

कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।
हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-

12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!

8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,

काल अनेक,......महाकाल ऐक..

काल अनेक,............  महाकाल ऐक..
देव अनेक,................ महादेव ऐक..
शक्ति अनेक,............ शिवशक्ती ऐक..
नाम अनेक, .............. भोलेनाथ ऐक..
नेत्र अनेक, .............. त्रिनेत्रधारी ऐक..
त्रिशूल अनेक,......... त्रिशूलधारी ऐक..
सर्प अनेक,............... सर्पधारी ऐक...
चंद्र अनेक,................ चंद्रधारी ऐक..
जटा अनेक,.............. जटाधारी ऐक..
राग अनेक,................... वैरागी ऐक..
वाश अनेक,................ शन्याषि ऐक..
दिशा अनेक,....... दशो दिशापती ऐक..
मंत्र अनेक,............   "ॐ"   मंत्र  ऐक..
नाथ अनेक,............... सोमनाथ ऐक..

* *माँ की इच्छा* * वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,


* *माँ की इच्छा* *

महीने बीत जाते हैं ,
साल गुजर जाता है ,
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,
मैं तेरी राह देखती हूँ।

आँचल भीग जाता है ,
मन खाली खाली रहता है ,
तू कभी नहीं आता ,
तेरा मनि आर्डर आता है।
 इस बार पैसे न भेज ,
 तू खुद आ जा ,
 बेटा मुझे अपने साथ ,
 अपने घर लेकर जा।

तेरे पापा थे जब तक ,
समय ठीक रहा कटते ,
खुली आँखों से चले गए ,
तुझे याद करते करते।

अंत तक तुझको हर दिन ,
बढ़िया बेटा कहते थे ,
तेरे साहबपन का ,
गुमान बहुत वो करते थे।
मेरे ह्रदय में अपनी फोटो ,
आकर तू देख जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

अकाल के समय ,
जन्म तेरा हुआ था ,
तेरे दूध के लिए ,
हमने चाय पीना छोड़ा था।
वर्षों तक एक कपडे को ,
धो धो कर पहना हमने ,
पापा ने चिथड़े पहने ,
पर तुझे स्कूल भेजा हमने।
 चाहे तो ये सारी बातें ,
 आसानी से तू भूल जा ,
 बेटा मुझे अपने साथ ,
 अपने घर लेकर जा।

घर के बर्तन मैं माँजूंगी ,
झाडू पोछा मैं करूंगी ,
  खाना दोनों वक्त का ,
  सबके लिए बना दूँगी।
नाती नातिन की देखभाल ,
अच्छी तरह करूंगी मैं ,
घबरा मत, उनकी दादी हूँ ,
ऐंसा नहीं कहूँगी मैं।
तेरे घर की नौकरानी ,
ही समझ मुझे ले जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

आँखें मेरी थक गईं ,
प्राण अधर में अटका है ,
तेरे बिना जीवन जीना ,
अब मुश्किल लगता है।
 कैसे मैं तुझे भुला दूँ ,
 तुझसे तो मैं माँ हुई ,
 बता ऐ मेरे कुलभूषण ,
 अनाथ मैं कैसे हुई ?

अब आ जा तू..
एक बार तो माँ कह जा ,
हो सके तो जाते जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।
  बेटा मुझे अपने साथ
  अपने घर लेकर जा

इसलिये कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा और..समय ..


एक सेठ जी थे  - 
जिनके पास काफी दौलत थी. 
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी. 
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.  
जिससे सब धन समाप्त हो गया. 
?
बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, 
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो? 

सेठ जी कहते कि 
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..." 
?
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया. 
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये... 

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये... 

दामाद लड्डू लेकर घर से चला, 
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया. 

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया.  
??
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया. 
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली... 

सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा... 
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में... 
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से 
ज्यादा और... समय से पहले न किसी को कुछ मिला है
और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो...
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।

जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।

बहुत ही खूबसूरत लाईनें.
.किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!

डरिये वक़्त की मार से,बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!

अकल कितनी भी तेज ह़ो,नसीब के बिना नही जीत सकती..!
बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,कभी बादशाह नही बन सका...!!

""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!

इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!

रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है

जो वास्तु शास्त्र मानते है उनके लिये : बाथरूम में दर्पण से हो सकता है नुकसान

बाथरूम में दर्पण से हो सकता है नुकसान

बाथरूम घर का एक अहम हिस्सा होता है। हर दिन की शुरूआत आमतौर पर यहीं से होती है क्योंकि सुबह उठते ही सबसे पहले फ्रेश होने के लिए हम बाथरूम पहुंचते हैं। इसलिए जरूरी है कि बाथरूम सुन्दर दिखने के साथ ही साथ सकारात्मक उर्जा प्रदान करने वाला हो ताकि पूरा दिन अच्छा बीते। यही कारण है कि बहुत से लोग बाथरूम में टाईल्स लगवाते हैं और कई एक्सेसरीज से सजा कर रखते हैं। फेस वॉश करने के बाद अथवा स्नान करने के बाद खुद को देखने के लिए लोग बाथरूम में दर्पण भी लगाते हैं।

चीनी वास्तुविज्ञान के अनुसार बाथरूम में दर्पण लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दर्पण दरवाजे के ठीक सामने नहीं हो। दर्पण का काम होता है परावर्तन यानी रिफ्लैक्ट करना। जब हम बाथरूम में प्रवेश करते हैं तो हमारे साथ सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा दोनों ही बाथरूम में प्रवेश करते हैं।
जब हम सोकर उठते हैं तब नकारात्मक उर्जा की मात्रा अधिक होती है। दरवाजे के सामने दर्पण होने से हमारे साथ जो भी उर्जा बाथरूम में प्रवेश करती हैं वह वापस घर में लौट आती है। दर्पण के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए बाथरूम में दर्पण इस प्रकार से लगाना चाहिए ताकि इसका रिफ्लैक्शन बाथरूम से बाहर की ओर नहीं हो।

फेंगशुई में यह भी कहा गया है कि बेडरूम में दर्पण नहीं लगाना चाहिए। बेडरूम में दर्पण का रिफ्लैक्शन बेड पर होने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। पति अथवा पत्नी में से किसी एक की तबीयत अक्सर खराब रहती है। कुछ लोग दर्पण को मुख्य द्वार के सामने लगाते हैं। फेंगशुई के अनुसार यह भी गलत है। इससे घर में आने वाली सकारात्मक उर्जा भी वापस लौट जाती है जिससे प्रगति की रफ्तार धीमी पड़ जाती है।

भगवान के साथ एक नाता

भगवान के साथ एक नाता
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बरसाना मे एक भक्त थे ब्रजदास।उनके एक पुत्री थी, नाम था रतिया। यही ब्रजदास का परिवार था।ब्रजदास दिन मे अपना काम क़रतै और शाम को श्री जी के मन्दिर मे जाते दर्शन करते और जो भी संत आये हुवे हो तै उनके साथ सत्संग करते। यह उनका नियम था।
             एक बार एक संत ने कहा भइया हमें नन्दगांव जाना है। सामान ज्यादा है पैसे है नही नहीतो सेवक क़रलेते। तुम हम को नन्दगाँव पहुँचा सकते हो क्या? ब्रजदास ने हां भरली ।ब्रजदास ने कहागर्मी का समय है सुबह जल्दी चलना ठीक रहेगा जिससे मै 10 बजे तक वापिस आजाऊ।संत ने भी कहा ठीक है मै 4बजे तैयार मिलूँगा।
                ब्रज दास ने अपनी बेटी से कहा मुझे एक संत को नन्दगाँव पहुचाना है। समय पर आ जाऊँगा प्रतीक्षा मत करना। ब्रजदास सुबह चार बजे राधे राधे करतै नंगे पांव संत के पास गये। सन्त ने सामान ब्रजदास को दिया और ठाकुर जी की पैटी और बर्तन स्वयं ने लाई लिये। रवाना तो समय पर हुवे लैकिन संत को स्वास् रोग था कुछ दूर चलते फिर बैठ जाते।इस प्रकार नन्दगाँव पहुँचने मे ही 11 बज गये। ब्रजदास ने सामान रख कर जाने की आज्ञा मांगी।संत ने कहा जून का महीना है 11 बजे है जल पी लो। कुछ जलपान करलो, फिर जाना। ब्रजदास ने कहा बरसाने की वृषभानु नंदनी नन्दगाँव मे ब्याही हुई है अतः मै यहाँ जल नही पी सकता। संत की आँखो से अश्रुपात होने लगा। कितने वर्ष पुरानी बात है ,कितना गरीब आदमी है पर दिल कितना ऊँचा है।
           ब्रजदास वापिस  राधे राधे करते रवाना हुवे। ऊपर से सूरज की गर्मी नीचे तपती रेत।भगवान को दया आगयी वे भक्त ब्रजदास के पीछैपीछै चलने लगे। एक पेड़ की छाया मे ब्रजदास रुके और वही मूर्छित हो कर गिर पड़ै।भगवान ने मूर्छा दूर क़रने के प्रयास किये पर मूर्छा दूर नही हुई।भगवान ने विचार किया कि मेने अजामिल गीध गजराज को तारा द्रोपदी को संकट से बचाया पर इस भक्त के प्राण संकट मे हैकोई उपाय नही लग रहा है।ब्रजदास राधारानी का भक्त है वे ही इस के प्राणों की रक्षा कर सकती है ।उनको ही बुलाया जावे। भगवान ने भरी दुपहरी मे राधारानी के पास महल मे गये।राधा रानी  ने इस गर्मी मे आने का कारण पूछा।भगवान भी पूरे मसखरे है।उन्होंने कहा तुम्हारे पिताजी बरसाना और नन्दगाँव की डगर मे पड़ै है तुम चलकर संभालो। राधा जी ने कहा कौन पिताजी? भगवान ने सारी बात समझाई और चलने को कहा। यह भी कहा की तुमको ब्रजदास की बेटी की रूप मे भोजन जल लेकर चलना है।राधा जी तैयार होकर पहुँची। पिताजी पिताजी आवाज लगाई।
         ब्रजदास जागे।बेटी के चरणों मे गिर पड़े आज तू न आती तो प्राण चले जाते।बेटी से कहा आज तुझे बार बार देखने का मन कर रहा है।राधा जी ने कहा माँ बाप को संतान अच्छी लगती ही है।आप भोजन लीजिये। ब्रजदास भोजन लेंने लगे तो राधा जी नेकहा घर पर कुछ मेहमान आये है मैउनको संभालू आप आ जाना। कुछ दूरी के बाद राधारानी अदृश्य हो गयी। ब्रजदास ने ऐसा भोजन कभी नही पाया।
          शाम को घर आकर ब्रजदास बेटी के चरणों मे गिर पड़े। बेटी ने कहा आप ये क्या कर ऱहै है? ब्रजदास नेकहा आज तुमने भोजन जल ला कर मेरे प्राण बचा लिये। बेटी ने कहा मै तो कही  नही गयी।ब्रजदास ने कहा अच्छा बता मेहमान कहॉ है? बेटी ने कहा कोई मेहमान नही आया। अब ब्रजदास के समझ मे सारी बात आई।उसनै बेटी से कहा कि आज तुम्हारे ही रूप मे राधा रानी के दर्शन हुवे।
नन्द के लाला की जय....
वृषभानु दुलारी की जय.......
जय  जय  श्री  राधे ...............