श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे

*।। श्रीकृष्ण ।।*
*श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे,*
*हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!*

*श्री* = निधि
*कृष्ण* = आकर्षण तत्व
*गोविन्द* = इन्द्रियों को वशीभुत करना गो-इन्द्रि, विन्द बन्द करना, वशीभूत
*हरे* = दुःखों का हरण करने वाले
*मुरारे* = समस्त बुराईयाँ- मुर (दैत्य)
*हे नाथ* = मैं सेवक आप स्वामी
*नारायण* = मैं जीव आप ईश्वर
*वासु* = प्राण
*देवाय* = रक्षक

अर्थात : *“हे आकर्षक तत्व मेरे प्रभो, इन्द्रियों को वशीभूत करो, दुःखों का हरण करो, समस्त बुराईयों का बध करो, मैं सेवक हूँ आप स्वामी, मैं जीव हूं आप ब्रह्म, प्रभो ! मेरे प्राणों के आप रक्षक है......*
          🌹जय श्री कृष्ण🌹

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