गुरु पुर्णिमा विशेष :
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जो मोह रहित होगा वही किसी का भला कर सकता है |
वैद्ध या डाक्टर दुनिया का इलाज करते है,पर अपनी स्त्री या बच्चे का इलाज दूसरे से करवाते है |
आखिर क्यो
खुद अच्छे डाक्टर या वैद्ध होते हूए भी मोह के कारण अपनी स्त्री या बच्चे का इलाज नही कर सकते | उनका इलाज वही कर सकेगा जिसमे मोह नही है |
अत: मोहरहित, पक्षपात रहित, संतो से जितनी अच्छी शिक्षा मिलती है, उतनी औरो के द्वारा नही मिलती | परंतु आज कल बडे दूख की बात है कि बहूत से गुरु कहते है कि तुम मेरे चेले बन जाओ तो बढिया ज्ञान मिलेगा , चेला बनने पर मोह हो जाएगा, ममता हो जायेगी और इससे दोनो का पतन हो जाएगा -----------
गुरु लोभी शिष्य लालची दोनो खेले दाव |
दोनो डूबा परसराम , बैठ पथर की नाव ||
चेला सोचता है गुरु जी को दान कर देने से बाबाजी हमारे पाप लेलेगे | उधर बाबा सोचते है पैसा मुफ्त मे मिल रहा है,चेले को एक कंठी देने मे क्या जा रहा है|
क्या कंठी ले लेने या दे देने से कल्याण हो जाता है ?
लोग कहते है गुरु बना लो, भाई नही है तो धर्म भाई बना लो,बहन नही है तो धर्म बहन बना लो |
गुरु बनाने से क्या होता है?
कोई कहते है हमारे गुरुजी बडे है तो कोई दूसरा कहता है हमारे बडे है ?
अब क्या और कैसे फैसला हो कि कौन बडा है ?
कहते है गुरु के बिना कल्याण ही नही होता तो जिसने गुरु बना लिया उसका कल्याण हो गया क्या ?
अगर उनका नही हूआ तो मेरा कैसे होगा भाई |
कुछ तो विचार करना चाहिए | यह नही सोचते कि जो गुरु बने हूए है उनकी दुर्दशा क्या है ?
गुरु बनाने के एजेन्ट होते है | वे दूसरो को कहते है कि तुम हमारे गुरुजी को अपना गुरु बनाओ | कैसी उल्टी रीति है | क्या पतिव्रता स्त्री दूसरी को कहती है कि मै पति को ईश्वर मानती हू,तुम भी मेरे पति को ईश्वर मानो, उनकी सेवा करो | तुम भी मेरे गुरु जी के चेले बन जाओ ,हमारी टोली मे आ जाओ ,तो क्या दूसरे के कल्याण का ढेका ले रखा है ?
आज यह हल्ला मचा रहता है अमूक को अमूक ने गुरु बना लिया तुम भी बना लो कल्याण होगा
विचार करे कि जिन्होने गुरु बनाया ,उनमे क्या फर्क परा |
जैसे पहले थे वैसे अब भी है | बनावटी गुरु से काम नह चलेगा | आप गुरु बनाएगे को बनाया हूआ गुरु क्या कल्याण करेगा |
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वास्तव मे गुरु बनाया नही जाता | गुरु तो हो जाता है | जिससे हमे किसी विषय का ज्ञान हूआ तो उस विषय मे वह हमारा गुरु हो गया ,चाहे हम उसे गुरु माने या न माने ,जाने या न जाने |
एक संत से किसी ने पूछा आपका गुरु कौन है?
तो उन्होने कहा---
जो मेरे से ज्यादा जानता है |
आपका चेला कौन है ?
तो उन्होने जबाब दिया --
जो मेरे से कम जानता है |कितना बढिया बात है जो हमसे ज्यादा जाने वो गुरु और जो कम जाने वो मेरा चेला |
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थोडा विचार करे,जिसके मन मे चेला बनाने की इच्छा है वह गुरु कैसे हूआ | वह तो चेला दास हूआ |जिसको चेले की गरज है वह चेले का गुलाम हूआ | जैसे जिसको रुपये की गरज हो वो रुपये का गुलाम हूआ |
वास्तव मे गुरु को चेले की गरज नही होती, चेले को ही गुरु की गरज होती है | यह वहम है कि गुरु बनाने से कल्याण हो जाता है | बनावटी गुरु कल्याण नही करता |
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कल्याण तो करते हैं - श्रीकृष्ण
हमे भगवान् कृष्ण को ही गुरु बनाना चाहिए -----
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् |
भगवान् जगद् मे है और हम भी उसी मे है | और उनका मंत्र है ---
श्रीमद्भागवद्गीता |
इसका मनन करे कल्याण होगा संदेह हो तो करके देख ले कल्याण होता है या नही |
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भगवान् के रहते हम गुरु के लिए भटके क्यो ?
वास्तव मे गुरु को ढूंढना नही पडता | फल पककर जब तैयार होता है तो तोता खुद उसे ढूढ लेता है | ऐसे ही अच्छे गुरु खुद चेला को ढूढते है , चेला को ढूढना नही परता | जैसे ही हम कल्याण के लिए तैयार हूए ,गुरु फट आ टपगेगा | फल जब पक कर तैयार होता है तब तोता अपने आप फल के पास आता है फल तोते को नही बूलाता न हि तोता को खोजने जाता |
वैसे ही हम जब अपने आप का कल्याण के योग्य हो जाते है तो गुरु अपने आप मिल जाता है |
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जो असली गुरु होते है वे दूसरे को चेला नही बनाते ,बल्कि गुरु ही बनाते है ----
पारस मे अरु संत मे बहूत अंतरौ जान |
वह लोहा कंचन करे वह करै आपु समान |
जिनको वो चेला बनाते है वह दूनिया का गुरु हो जाता है |
हम अपने भीतर उद्धार की लालसा लगा ले तो गुरु खुद ब खुद खोजते हूए आ जाएगे |
कभी कभी स्वप्न्न मे गुरु मिल जाते है और मंत्र दे जाते है |
चरण दास जी महराज को शुकदेव जी स्वपन्न मे आकर दीक्षा दी |
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गुरु के ह्रदय मे तो दुनिया के उद्धार की लालसा होती है | अत: हमे ढूढने जाने की जरुरत नही |
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अगर गुरु बनाना ही है तो कृष्ण को गुरु माने | वो तो सम्पूर्ण जगत के गुरु है ---
💐कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् 💐
उनके मंत्र श्रीमद्भागवद्गीता के अनुसार जीवन को बनाने की कोशिश करे उसके अनुसार ही जिए | अवश्य कल्याण होगा |
इसलिए हम सभी को
ऐरे गैरे नत्थू खैरे को गुरु नही बनाना चाहिए बल्कि निडर होकर भगवान् के चरणो मे आश्रित हो जाए |
बनावटी गुरु के एजेट रुपी चेले कहते है - तुम इनके चले हो जाओ |
रावण भिक्षा लेने सीता जी के पास आया था तो कहा -जो कार (लकीर) है, उसके भीतर हम नही आते ---
नही आते कार के भीतर ,निराकार जपते हरिहर |
हम निराकार को भजते है ,आकार के भीतर नही आते,लकीर के बाहर आकर भिक्षा दो | सीता जी बाहर आयी तो उनको उठाकर चल दिया |
ये है गुरुजी महराज | इनसे सावधान ही रहे | और हमेशा याद रखे -----*
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् |
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आज गुरु पुर्णिमा के अवसर पर आप सभी गुरुजन को सादर नमन