कल्पवृक्ष :



कल्पवृक्ष :
"पापा चाय", डोली के इन शब्दों से जैसे पापा की तंद्रा भंग हुई।
बगीचे में पौधों को पानी देते हुए वे डोली के बारे में ही सोच रहे थे। अच्छा-सा घर, वर देखकर शादी तय तो कर दी है उन्होंने, लेकिन उनकी सुंदर, सुशील गुड़िया, जो घर-परिवार और दोस्तों सभी में बहुत प्रिय है, उसे जैसे किस्मत के ही हवाले कर रहे हों, ऐसा उन्हें लग रहा था। यद्यपि अपनी ओर से पूर्णत: निश्चिंत होने तक जानकारी ली थी उन्होंने वर पक्ष की, किंतु फिर भी...
इस 'फिर भी' को एक पिता ही समझ सकता है शायद।
उन्होंने बहुत प्यार से डोली की तरफ़ देखा, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में कुछ अजीब-सा भाव देखा आज और पूछ ही लिया, "तू खुश तो है ना बेटा?"
"हाँ पापा", डोली ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
फिर डोली ने ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "पापा ये पेड़ हम यहाँ से उखाड़ कर पीछे वाले बगीचे में लगा दें तो?"
पापा कुछ असमंजस में पड़ गए, बोले, "बेटे ये चार साल पुराना पेड़ है अब कैसे उखड़ेगा और अगर उखड़ भी गया तो दुबारा नई जगह, नई मिट्टी को बर्दाश्त कर पाएगा? कहीं मुरझा गया तो?"
डोली ने एक मासूम-सा सवाल किया, "पापा एक पौधा और भी तो आपके आँगन का नए पारिवेश में जा रहा है ना, नई मिट्टी, नई खाद में क्या ढल पाएगा? क्या पर्याप्त रोशनी होगी आपके पौधे के पास? आप तो महज़ चार सालों की बात कर रहे हैं ये तो बाईस साल पुराना पेड़ है ना।"
कहकर डोली अंदर जाने लगी इधर पापा सोच रहे थे, ऐसी शक्ति पूरी क़ायनात में सिर्फ़ नारी के पास है जो यह पौधा नए परिवेश में भी ना सिर्फ़ पनपता है, बल्कि, खुद नए माहौल में ढलकर औरों को सब कुछ देता है, ताउम्र औरों के लिए जीता है। क्या सच में,
यही 'कल्पवृक्ष' होता है?