एक घर मे पांच दिए

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एक घर मे पांच दिए जल रहे थे...
अचानक, एक दिन एक दिए ने कहा - ''इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगों को कोई कदर नही है, तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं... '' और वह दीया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया... जानते हैं, वह दिया कौन था ?
उस दीया का नाम था, "उत्साह" !
यह देख दूसरा दीया कहने लगा.. "अब मुझे भी बुझ जाना चाहिए...निरंतर रोशनी देने के बावजूद भी लोगों को मेरे महत्व का पता नहीं चल रहा है"...और इतना कहकर वह दीया भी बुझ गया...
उसका नाम था, "शांति" !
उत्साह और शांति के बुझने के बाद , जो तीसरा दीया था , वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया...इसका नाम था-"हिम्मत"!
उत्साह, शांति और हिम्मत के बुझते ही चौथा दिया स्वतः ही बुझ गया... इसका नाम था, "समृद्धि"!
चारों दीए बुझने के बाद केवल पांचवां दीया अकेला ही जल रहा था... हालांकि पांचवां दीया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह निरंतर जल रहा था...
तभी उस घर में एक लड़के ने प्रवेश किया... उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ एक ही दीया जल रहा है, वह खुशी से झूम उठा...।
चार दीए बुझने की वजह से वह दुखी नही हुआ, बल्कि, यह सोचकर खुश हुआ कि कम से कम एक दीया तो अभी भी जल रहा है...।
उसने तुरंत उस पांचवे दिये को उठाया और बाकी के चार दीए फिर से जला दिए।
जानते हैं, उस पांचवें और अनोखे दिये का नाम क्या था... ?
उसका नाम है....."उम्मीद......"!
मित्रों, इसलिये हमेशा अपने मन मे "उम्मीद का दीया" जलाए रखना..... चाहे सब दीए बुझ जाएं, लेकिन "उम्मीद" का दीया नही बुझना चाहिए । ये एक ही दीया काफी है बाकी सब दीयों को जलाने के लिए।

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