National Defence Academy (उस मैडल का नाम " लचित बोरफुकन ")

The best passing out cadet of National Defence Academy is conferred the Lachit Borphukan gold medal.
It was instituted by the Assam Government in May 2000 to perpetuate the memory of Lachit Borphukan


शायद आप में से कइयो को ज्ञात होगा कि NDA (National Defence Academy) में जो बेस्ट कैडेट होता है, उसको एक गोल्ड मैडल दिया जाता हैं |

लेकिन क्या आपको यह ज्ञात हैं कि उस मैडल का नाम " लचित बोरफुकन " है ?

कौन हैं ये " लचित बोरफुकन " ? पोस्ट को पूरा पढ़ने पर आपकों भी ज्ञात हो जाएगा कि क्यों वामपंथी और मुगल परस्त इतिहासकारों ने इस नाम को हम तक पहुचने नहीं दिया |

क्या आपने कभी सोचा है कि पूरे उत्तर भारत पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम शासक और मुग़ल कभी बंगाल के आगे पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा क्यों नहीं कर सके ?

कारण था वो हिन्दू योद्धा जिसे वामपंथी और मुग़ल परस्त इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नो से गायब कर दिया ....

और ये योद्धा थे असम के परमवीर योद्धा "लचित बोरफूकन।"

अहोम राज्य (आज का आसाम या असम) के राजा थे चक्रध्वज सिंघा और दिल्ली में मुग़ल शासक था औरंगज़ेब। औरंगज़ेब का पूरे भारत पे राज करने का सपना अधूरा ही था बिना पूर्वी भारत पर कब्ज़ा जमाये।
इसी महत्वकांक्षा के चलते औरंगज़ेब ने अहोम राज से लड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी। इस सेना का नेतृत्व कर रहा था राजपूत राजा राजाराम सिंह। राजाराम सिंह औरंगज़ेब के साम्राज्य को विस्तार देने के लिए अपने साथ 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 राजपूत सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी सैनिक और 40 पानी के जहाजों की विशाल सेना लेकर चल पड़ा अहोम (आसाम) पर आक्रमण करने।

अहोम राज के सेनापति का नाम था "लचित बोरफूकन।" कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था।

इससे बौखलाया औरंगज़ेब जल्द से जल्द पूरे पूर्वी भारत पर कब्ज़ा कर लेना चाहता था।

राजाराम सिंह ने जब गौहाटी पर आक्रमण किया तो विशाल मुग़ल सेना का सामना किया अहोम के वीर सेनापति "लचित बोरफूकन" ने। मुग़ल सेना का ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे रास्ता रोक दिया गया। इस लड़ाई में अहोम राज्य के 10000 सैनिक मारे गए और "लचित बोरफूकन" बुरी तरह जख्मी होने के कारण बीमार पड़ गये। अहोम सेना का बुरी तरह नुकसान हुआ। राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण ने लिए कहा। जिसको राजा चक्रध्वज ने "आखरी जीवित अहोमी भी मुग़ल सेना से लडेगा" कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

लचित बोरफुकन जैसे जांबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गयी थी। अगले दिन ही लचित बोरफुकन ने राजा को कहा कि जब मेरा देश, मेरा राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किये जाने के खतरे से जूझ रहा है, जब हमारी संस्कृति, मान और सम्मान खतरे में हैं तो मैं बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकता हूँ ? मैं युद्ध भूमि से बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकता हूँ ? हे राजा युद्ध की आज्ञा दें....

इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर वो ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, जिसमे "लचित बोरफुकन" ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला। अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई। जिसका पीछा करके "लचित बोफुकन" की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया। इस युद्ध के बाद कभी मुग़ल सेना की पूर्वोत्तर पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हुई। ये क्षेत्र कभी गुलाम नहीं बना।

ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर मिली उस ऐतिहासिक विजय के करीब एक साल बाद ( उस युद्ध में अत्यधिक घायल होने और लगातार अस्वस्थ रहने के कारण ) माँ भारती का यह अद्भुद लाड़ला सदैव के लिए माँ भारती के आँचल में सो गया |

माँ भारती के ऐसे अद्वितीय पुत्र को कोटि - कोटि नमन 🙏🙏🙏