भगवान की भक्ति का दिखावा क्यों ?..

प्रश्न : ये जो आप लोग भगवान के सामने जाकर हाथ जोड़ते हो, दंडवत प्रणाम करते हो, ये सब क्यों ?
भगवान हमारे दिल में हैं, वो सब जानते हैं, मन में प्रणाम करो, उनके सामने ये दिखावा क्यों ?
मंदिर जाना, भगवान के सामने जाकर दंडवत करना । इस सबकी क्या आवश्यकता है ?

उत्तर :
अति उत्तम प्रश्न है । दिखावे के लिए तो कुछ भी नहीं करना चाहिए ।
एक अंतिम चरम है, दिखावे के लिए करना । जो दिखावे के लिए करते हैं वो सरासर गलत हैं ।
दूसरा अंतिम छोर है कि दिखाते ही नहीं हैं ।
दोनों गलत है ।

उदाहरण के लिए :
एक क्रिकेट का मैच है, दो गेंदे फेकी जानी बाकि हैं । 5 रन चाहिए । सचिन तेंदुलकर ने एक गेंद में चार रन मार दिए ।
सारा स्टेडियम शांत बैठ जाये, जनता में से कोई ताली न बजाये, कोई हर्ष का संकेत नहीं । क्या यह संभव है ? ये कहकर की हमारे दिल में लड्डू फूट रहे हैं, हम यह सचिन को क्यों दिखाएँ, या आपस में एक दूसरे को क्यों दिखाएँ ?

यदि सब हर्षोल्लास के कारण चिल्लाएं या ताली बजाएं तो क्या ये सब दिखावा है, या हृदय से प्रेम या हर्ष का स्फुरित होना है ।
सभी इस बात को मानेंगे कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं और वह व्यक्ति कोई महान कार्य करता है तो हृदय से स्वाभाविक रूप से स्वतः हर्ष का प्रतिफल चिल्लाने या उस व्यक्ति का नाम लेने या ताली बजाकर नाचने में प्रकट होता है ।

उसी प्रकार जब हम अपने अति प्रिय भगवान के समक्ष जाकर उनकी महानता का स्मरण करते हैं तो स्वतः ही उनके प्रति आदर-सम्मान के फलस्वरूप हाथ जोड़ते हैं और दंडवत प्रणाम करके उनको कहते हैं, हे भगवन मैंने आपको अपना जीवन, समर्पित किया ।

यह दिखावा नहीं बल्कि भक्त के हृदय से अपने प्रिय भगवान के प्रति सहज कृतज्ञता और समर्पण के लक्षण है ।

धन्यवाद।
हरे कृष्ण ।