* *माँ की इच्छा* * वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,


* *माँ की इच्छा* *

महीने बीत जाते हैं ,
साल गुजर जाता है ,
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,
मैं तेरी राह देखती हूँ।

आँचल भीग जाता है ,
मन खाली खाली रहता है ,
तू कभी नहीं आता ,
तेरा मनि आर्डर आता है।
 इस बार पैसे न भेज ,
 तू खुद आ जा ,
 बेटा मुझे अपने साथ ,
 अपने घर लेकर जा।

तेरे पापा थे जब तक ,
समय ठीक रहा कटते ,
खुली आँखों से चले गए ,
तुझे याद करते करते।

अंत तक तुझको हर दिन ,
बढ़िया बेटा कहते थे ,
तेरे साहबपन का ,
गुमान बहुत वो करते थे।
मेरे ह्रदय में अपनी फोटो ,
आकर तू देख जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

अकाल के समय ,
जन्म तेरा हुआ था ,
तेरे दूध के लिए ,
हमने चाय पीना छोड़ा था।
वर्षों तक एक कपडे को ,
धो धो कर पहना हमने ,
पापा ने चिथड़े पहने ,
पर तुझे स्कूल भेजा हमने।
 चाहे तो ये सारी बातें ,
 आसानी से तू भूल जा ,
 बेटा मुझे अपने साथ ,
 अपने घर लेकर जा।

घर के बर्तन मैं माँजूंगी ,
झाडू पोछा मैं करूंगी ,
  खाना दोनों वक्त का ,
  सबके लिए बना दूँगी।
नाती नातिन की देखभाल ,
अच्छी तरह करूंगी मैं ,
घबरा मत, उनकी दादी हूँ ,
ऐंसा नहीं कहूँगी मैं।
तेरे घर की नौकरानी ,
ही समझ मुझे ले जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

आँखें मेरी थक गईं ,
प्राण अधर में अटका है ,
तेरे बिना जीवन जीना ,
अब मुश्किल लगता है।
 कैसे मैं तुझे भुला दूँ ,
 तुझसे तो मैं माँ हुई ,
 बता ऐ मेरे कुलभूषण ,
 अनाथ मैं कैसे हुई ?

अब आ जा तू..
एक बार तो माँ कह जा ,
हो सके तो जाते जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।
  बेटा मुझे अपने साथ
  अपने घर लेकर जा