महाकाल को निर्वाण रूप कहा गया है..

महाकाल को निर्वाण रूप कहा गया है। 
बारह ज्योतिलिंग रुद्राष्टक के अंदर समाये हुए हैं। 
रुद्राष्टकम् यदि आप अपनी झोली में लेकर घूमते है। 
तब आपकी झोली में बारह ज्योतिलिंग होते है।
भगवान् शिव अष्ट मूर्ति है।रुद्राष्टक की रचना इसी के लिए हुई है।
काकभुसुण्डि जी ने आठ अपराध किये थे। इससे मुक्ति के लिए ही रुद्राष्टक है। 
अपराध हम सब करते है।रूद्राष्ट्क अपराधों से मुक्त होने के लिए 
उसकी निवृक्ति के लिए सफल साधना का साधन है।
रुद्राष्टक इंसान की राम भक्ति को दृढ़ करता है कृष्ण भक्ति को बल देता है। 
रुद्राक्षक का पाठ आह्लाद और ऊर्जा प्रदान करता है। 
रुद्राष्टक सिद्ध भी है और शुद्ध भी है। रुद्राष्टक बोले नहीं रुद्राष्टक गाएँ।

शिव भक्ति के घमण्ड में चूर काकभुशुण्डि गुरु का उपहास करने पर भगवान शंकर के शाप से अजगर बने। तब गुरु ने ही अपने शिष्य को शाप से मुक्त कराने के लिए शिव की स्तुति में रुद्राष्टक की रचना की। शिव की इस स्तुति से भक्त का मन भक्ति के भाव और आनंद में इस तरह उतर जाता है कि वह बाहरी दुनिया से मिले नकारात्मक ऊर्जा, तनाव, द्वेष, ईर्ष्या और अंह को दूर कर देता है। सरल शब्दों में यह पाठ मन की अकड़ का अंत कर झुकने के भाव पैदा करता है।

व्यावहारिक जीवन की नजर से यह कथा संदेश देती है कि जीवन में सफलता, कुशलता, धन या ज्ञान के अहं के मद में चूर होकर बड़े या छोटे किसी भी व्यक्ति का उपहास या अपमान न करें। आपके लक्ष्य प्राप्ति और सफलता में मिले किसी भी व्यक्ति के छोटे से योगदान को भी न भुलाएं और ईर्ष्या से दूर होकर पूरे बड़प्पन के साथ अपनी सफलता में शामिल करें। इससे गुरु-शिष्य ही नहीं हर रिश्ते में विश्वास और मिठास बनी रह सकती है। धार्मिक दृष्टि से यह संदेश है कि शिव किसी भी बुरे आचरण को भी सहन नहीं करते, चाहे फिर वह उनका परम भक्त ही क्यों न हो।


रुद्राष्टक एक प्रयोग शाला है जिसमे से शंकर प्रकट हो सकता है। शंकर कृपा प्रकटेगी तब गुरुदेव के प्रति विश्वास बढेगा। जीवन में जाने अनजाने में कोई अपराध हो जाये उसकी निवृक्ति के लिये पूर्ण प्रसन्ता प्राप्ति के लिए रुद्राष्टक का जन्म हुआ है। रूद्राष्ट्क आपके गुरुमंत्र को बलवता प्रदान करता है। रुद्राष्टक का पठन नहीं  रुद्राष्टक का गान करना चाहिए। देवताओं का नाम जपने से पूण्य बढ़ते है। शंकर का नाम जपने से पाप समाप्त हो जाते है।

रुद्राष्टक आठ जनो ने गाया पहला भाग गुरुदेव ने गाया, दूसरा भाग पार्वती ने गाया, तीसरा भाग गणेशजी ने गाया चौथा बंध  कार्तिकेय   ने गाया पांचवा बंध नंदीश्वर ने गाया छठवा बंध माँ सरस्वती ने गाया। सातवा बंध भागीरथी गंगाजी ने गाया। आठवा और आखरी बंध गुरुवर ने  भुसुंडि से गाने को कहा भुसुंडि रो रहा था उसके शरीर में कम्पन था उसके होठों कांप रहे थे। सभी ने कहा तेरे लिए सभी प्राथना कर रहें है तू भी गा, एक एक बंध के साथ शंकर का क्रोध निचे उतर रहा था। सबने अपने हाथ बुद्धपुरुष गुरुवर के हाथों को स्पर्श किया बुद्ध पुरुष ने अपना हाथ भुसुंडि के सर पर रखा उसके होठों को स्पर्श किया तब यह आखरी बंध उसके मुख से निकला। न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।

रुद्राष्टक का गान करते करते आठों रो रहे थे और आखरी में आठों ने एक साथ गाया। रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।